Sunday, March 12, 2017

ये शहर




मेरी सब शरारतों का गवाह  
मेरी उम्र से बस कुछ ही बड़ा 
इसकी बाँहों में खेली मैं बढ़ी  
इसकी राहों पे गिरी और संभली

ये मेरे बचपन का दोस्त 
ये मेरी जवानी का साथी 
इसके फूलों की खुशबू मेरी 
इसके पतझर के रंग मेरे अपने

हर मोड़ में कोई किस्सा सुहाना 
हर ईमारत में मेरा हिस्सा पुराना
इसकी हवाएं मेरी कहानी बांचती
इसके पानियों में मेरे दर्द के घोल 
 ये शहर मुझे भूल नहीं पायेगा 
मेरे दिल सा ही तो है ये शहर 

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